Tuesday 18 December 2012

चाचा का कोट

जगुआ चाचा बड़े ध्यान से अपने नए कोट को देख रहे थे । उन्होने अपने पोते को मना किया था कि वह कोट न बनवाए , उन्हे जरूरत नहीं है । लेकिन वह नहीं माना और  बनवा ही लाया बढ़िया गरम कोट । वह जानता था कि उसके दादा जी को कोट  कितना पसंद है परंतु वह शायद यह नहीं जानता  था पुराने कोट मे दादा जी पुरानी यादें भी जुड़ी हैं ।

जगुआ चाचा को अपने पुराने दिन याद आने लगे , जब वे छोटे थे । जगुआ चाचा अपने आठ भाई बहिनों मे सबसे छोटे थे । तीन बहिने बड़ी उसके बाद दो मे  भाई फिर दो बहिनें और बाद वे खुद थे । सबसे छोटे होने के कारण सबके दुलारे भी थे , सभी भाई बहिन उन्हे बहुत प्यार करते थे । घर मे माता पिता के अलावा आजी बाबा भी थे जो उन्हे प्यार करते थे ।  उसी गाँव  की पाठशाला  में सभी भाई थोड़ा बहुत पढ़ आया करते । लेकिन उन दिनों बेटियों की पढ़ाई पर बड़ी सख्त पाबंदी थी , लोगों का कहना था  कि लड़कियां पढ़  लिख कर बिगड़ जाएंगी । इसलिए बहिने घर पर ही भाइयों की किताबों से थोड़ा बहुत पढ़ लिया करती थी , और रामायण पढ्ना , पत्र लिखना सीख गयी थी  ।  
जगुआ चाचा उस समय बहुत छोटे थे , जब सभी भाई बहिनो की एक एक कर शादी ब्याह होने लगे । बहिने ससुराल चली गई और घर मे भाभियाँ आ गईं । अब तक चाचा भी आठ नौ साल के हो गए थे ।
 अम्मा ने सोचा कि-"अब केवल जगुआ ही ब्याह वास्ते बच रहा है अब इसका भी ब्याह काज निपटा दें तो गंगा नहाये ।"
पर चाचा मजे से अपना जीवन जीना चाहते थे उसके लिए ब्याह करना काहे को जरूरी है ? गए भाभी के पास अल्टिमेटम दिया कि अगर ब्याह करवाया तो मै घर छोड़ कर चला जाऊंगा ।
सबने समझाया कि -" अब तो तू बड़ा हो गयो है एही वास्ते तेरो ब्याह हो जानो जरूरी है ।"
अम्मा ने समझाया कि - "अब मै बूढ़ी हो रही हूँ अब हाथ पाँव चलते नहीं । तेरी सेवा कौन करेगा । "
तपाक से बोले चाचा - "तो क्या हुआ तुम बूढ़ी हो रही पर भौजी तो बूढ़ी नहीं हुईं है वह मेरी देखभाल कर लेंगी । क्यों भौजी तुम करोगी न । " भौजी ने घूँघट से सिर हिला कर जवाब दिया हाँ ।

बड़े भैया बोले -"यह हमारी दुलहिनिया है हमारी सेवा करेगी , तुम्हारी थोड़े ही । तुम्हें अपनी सेवा करानी है तो अपनी दुलहिनिया खुद लाओ । " 
 चाचा दौड़े गए भाभी के गले मे अपनी छोटी छोटी बाहें डाल कर लटक गए -" जा मेरी मेरी भी दुलहिनिया है , जैसे हमारी तुम्हारी अम्मा एक ही है बाबू एक ही है तो जा दुलहिनिया भी हमारी ।" पूछा भाभी से कि -" काहे भौजी तुम काहे नाही कहती कि तुम हमारी भी दुलहिनिया हो । " भाभी ने सिर हिलाया बोली -" नाही रे ! अपनी दुल्हिन तो खुद को ही लानों  होत है । "

काफी लड़ाई  और  मान मनौव्वलके बाद थोड़ा राजी हुए चाचा पर फिर पूछा कि -"हमे क्या मिलेगा ? 
 " अम्मा बोली -" बउआ तुम्हें नए कपड़े , नए जूते , टोपी , साइकिल , और  नोटों की चमकीली वाली  माला मिलेगी और बाजा भी मिलेगा साथ मे दुल्हिन मिलेगी जैसी भैया के पास है । वो तुम्हारी खूब सेवा किया करेगी ।  "
 चाचा बोले -" भैया को हम अपनी दुलहिनिया नाही देंगे , भैया ने हमे अपनी नाही दी है ।"
 सब हंस पड़े ठीक है ठीक है तुम न देना । चाचा बोले साहब वाला कोट मिलेगा कि नही । पिताजी बोले "अभी तुम छोटे हो जब बड़े हो जाओगे तब साहब वाला कोट भी बनवा देंगे । "
 बड़े धूम धाम से जगुआ चाचा का विवाह हुआ । बहू घर आ गई । अम्मा ने एलान कर दिया की " देखो बहुरिया हमाए बउआ का ध्यान राखियो जो वो कहे वही करियो यही खातिर हम तुम्हें लाएँ है । "
छोटी सी चाची तमक कर बोली - "जे का बात हुई हमाइ बात कौन मानेगा । " 
अम्मा ने कहा- " बउआ  ही तुम्हारी बात मानेगा ।"छोटी सी चाची खुश हो गई । लंबा सा घूँघट निकाले छोटे छोटे हाथों मे ढेर सारी लाल चुड़ियाँ पहने पाँवों मे छम छम करती पायल पहने चाची जब चाचा के सामने से गुजरती चाचा  तपाक से बोल उठते- " ए छमिया ! चल मेरे पाँव  दबा । "
 चाची झट से कहती -" काहे हम काहे दबाएँ  तुम्हाए पाँव , काम तो हम कर रही है पाँव तो हमाए दर्द कर रहे है , तुम्हें खुद ही हमाए पाँव दबाने चाहिए ।" सभी भौजिया खिलखिला कर हंस पड़ती । दोनों छुप कर भाग जाते ।
 बचपन ऐसे ही लड़ते झगड़ते हंसी ठिठोली करते बीत गया । दोनों बचपन से युवावस्था मे पहुंचे । चाचा भी गाँव की पाठशाला से निकल कर शहर के बड़े कालेज मे पढ़ने चले गए । बड़ी लगन और मेहनत से पढ़ाई की और कालेज मे अव्वल आए । सारे मेधावी छात्रों को एक अङ्ग्रेज़ अफसर आकर सम्मानित करने वाले थे । चाचा ने सोचा धोती पहन कर बड़े अफसर के सामने जाना अच्छा नहीं लगेगा सो एक कोट बनवा लेते है । बाजार जाकर कपड़ा लिया और सिलने दे दिया बारह रुपए सिलाई भी दे दी । कोट पैंट पहन कर चाचा बड़े ही शान से जब मंच पर चढ़े , तो तालियों की गड़गड़ाहट ने उनका स्वागत किया । फूल कर कुप्पा हो गए चाचा । फिर तो चाचा आगे बढ़्ते गए बढ़िया नौकरी भी मिल गई । चाचा अपनी छमिया को अपने साथ ले आए ।  दो बच्चे भी हुए एक बेटा और एक बेटी । खुशी का कोई मौका हो चाचा अपना कोट जरूर पहनते । बच्चों का कोई स्कूल का उत्सव हो या घर की बर्थ डे पार्टी ,  बेटी , बेटे का ब्याह किया वही पुराना कोट पहना । बेटे ने कहा भी--" क्या पापा आप भी , अब आपका बेटा कमा रहा है नया सूट तो बनवा ही सकता है ।" बढ़िया गरम सूट का कपड़ा ले आया परंतु चाचा ने उस कपड़े से उसके लिए ही सूट सिलवा दिया । और अपने पुराने सूट की खूबिया भी गिनवा दीं - "बेटा तुम इस कोट की कीमत क्या जानो ? यह कितना कीमती है, यह तब मैंने बनवाया था जब इक्का दुक्का लोग ही कोट बवाया करते थे या फिर अंग्रेज़ लोग ही कोट पहने दिखते ।"  और भी न जाने क्या क्या ।   बेटा विवाह करके विदेश चला गया उसकी नौकरी वहाँ थी , उसकी मजबूरी थी । चाची ने बहू को बेटे के साथ भेज दिया । चाचा और चाची की भी उम्र ढलने लगी अब कम दिखाई पड़ता और काम भी न होता । अकेले जीवन भी कठिन होने लगा था ,एक दूसरे का साथ ही जीने का सहारा था । हालांकि चाचा के मित्र बहुत थे सुबह सैर सपाटे के लिए निकल जाते । लौट कर छाछ पीते और गप्पे लगाते । बेटा बहू का फोन आ जाता तो खोज खबर मिल जाती , कुछ समय खुशी से निकल जाता । एक दिन फोन आया बहू ने दो जुड़वा बेटों को जन्म दिया है , चाची ने बहू को तमाम नसीहते दे डाली- " सुन बेटा ठंड से बचना और पानी उबाल कर पीना , बच्चों की समय समय पर मालिश भी करती रहना, ऊपर का दूध  बिलकुल न देना , काला टीका बच्चों को जरूर लगाना।" हँसते हुए बहू ने कहा - "जी माँ जी, आप बिलकुल चिंता न करें । आपकी बातों का मै पूरा ध्यान रखूंगी ।" और चाची ने खुशी मे  शगुन के गीत भी  गुनगुना डाले । चाची का बड़ा मन था की एक बार बेटा बहू के पास चली जाएँ , बच्चों को देख आयें । चाचा ने समझाया -" तुम नाहक परेशान हो रही हो वहाँ देखभाल करने को लोग होते है फिर मै भी तो यहाँ अकेला हो जाऊंगा। " सीधी साधी चाची  चाचा की बात टाल न पाईं । तकरीबन रोज ही बेटे बहू से बात करतीं और बच्चों की खबर लेती रहतीं । बहू ने हंसी मे कह भी दिया -"माँ जी बच्चों के आगे आप हम लोगों को तो भूल ही गईं हैं , हम भी आपके ही बच्चे हैं । " 
 " अरे नहीं रे !" मूल से सूद अधिक प्यारा होवे है ।" चाची ने मीठी सी झिड़की दी। दो वर्षों के बाद , आखिरकार वह शुभ दिन भी आया जब बहू दोनों बच्चों को लेकर उनके दादी दादा से मिलवाने आ रही है । दादी दादा ने बच्चों के लिए ढेर सारी तैयारियां की । एक छोटी सी पार्टी  अपने पोतो के आने की खुशी मे दे डाली ।  पर चाचा अपना पुराना कोट पहनना न भूले । चाची ने झिड़का - " छोड़ो भी कब तक इस पुराने कोट को सीने लगाए रहोगे , बेटा नया बनवा रहा था तो नया बन जाने दिया होता । कम से कम आज नया कोट पहन लेते ।"  बच्चे बड़े प्यारे थे उनके माता पिता ने बड़े अच्छे संस्कार दिये थे । आते ही उन दोनों ने दादी दादा के पाँव छूए । अपनी तोतली भाषा मे दादा दादी से ढेरों बाते कर डालीं ,इतने प्यारे बच्चे थे थोड़ी ही देर मे  दादी दादा की जान बन गए । कुछ दिन रह कर सब अपने अपने घर वापस चले गए । इधर चाची उदास रहने लगी , वे बच्चों को भूल न पा रहीं थीं और किसी से कह भी न पा रहीं थीं , बस फोन से जब बात होती तो उनके चेहरे की  खुशी देखते ही बनती । उम्र ढलती जाती थी, चाची बीमार रहने लगीं ,   एक दिन चाची सोई तो ऐसी सोई की फिर न उठी । चाचा एकदम अकेले रह गए । बहू बेटा आए , बेटे ने कहा अब तो पापा हमारे साथ चलिये , इसके लिए चाचा राजी न हुए, उन्होने कहा -"यहाँ तुम्हारी माँ की यादें जुड़ी हैं और फिर अपना देश अपना ही होता है, मेरे मित्र भी यहाँ है सब देखभाल कर लेंगे।"  लेकिन बहू बेटे और पोतो के आगे उनकी एक न चली , उन्हे बच्चों के साथ जाना पड़ा। मन मे यही सोचने लगे - " मै बड़ा भाग्यशाली हूँ जो मुझे ऐसे बच्चे मिले है वरना आजकल विदेश जाते ही बच्चे माँ बाप को  भूल जाते है । "  

समय बीतता गया छोटे छोटे बच्चे बड़े हो गए । आज उनका पोता भी काबिल डाक्टर बन गया था और दूसरा इंजीनियर । दोनों अपने मम्मी पापा के साथ साथ दादू के लिए भी गिफ्ट लेकर आए थे । बड़ा पोता कोट लाया था और दूसरा सुंदर घड़ी लाया था । दोनों अपनी अपनी जिद कर रहे थे दादू पहले मेरी गिफ्ट । छोटा वाला उनका हाथ पकड़ कर घड़ी पहना रहा था बड़ा वाला कोट पहना रहा था । पर चाचा अपनी धुन मे खोए थे , उन्हे लग रहा था कि  चाची उन्हे कोट पहना रहीं है । अपनी धुन मे बोल पड़े -"तुम भी क्या छमिया ? आज तक वैसी ही हो । "
दोनों लड़के बड़े ज़ोर से हंस पड़े -"अरे दादू ! ये आपकी छमिया नहीं ये हम है राम लखन ! " दादू झेंप गए ।


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